लेखनी कहानी -12-Mar-2024
मोल का प्रेम अरे भाई ! दिल लगाऊ में किससे ? भावनाओ को खरीदने की औकात नहीं।
आँखे मिलाई थी मैंने जिससे वो सदाचारिता की रखती सोगात नहीं
होशो हवास को छोड़ मैने जोश लगाया था मिलन भावनाओं का देख कोर्ट कचहरी में मोल लगाया था।
मैं, नफा, नुकसान देखु व्यापारी हूँ मैं, लेकर पैसा महाव्यापारी ने क्यों प्यार का खिलवाड़ किया था
चन्द रूपयो की लालच में वो आकर इज्जत को नोटो से टिकाऊ कर दिया
चुप कराकर प्रेम भुत को, कचहरी में तांत्रिक यज्ञ करा दिया
देख उसकी झाडु फुकार मैने ले ली अब तो डकार नफा नुकसान का देख हिसाब करनी बडी बन्द मुझे वो प्रेम किताब
भाई! इज्जत मेरी तनती रही भाई !मोहलत मेरी बनती रही गवा क्यों दें इज्जत मां-बाप की गर्व से कहे वो है इज्जत यह मां-बाप की
कर मेहनत दिलो जान से सिर ऊंचा किया शान से
मोल नहीं कोई प्रेम का भावुकता को छोड़ा है।. खोल रही माई प्रेम की दुलार प्रेम को छोड़ा नहीं ।
सब्र रख श्रृद्धा से फल मिठा प्रतीक्षा का है। मजबुर मत हो हालात से मुंह मोडने का यह बात तो परीक्षा के शिक्षा की है।